Thursday 15 February 2018

Text of PM’s speech at the dedication of several development projects to the nation in Itanagar, Arunachal Pradesh on 15.02.2018

विशाल संख्‍या में पधारे मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों।

जब हिन्‍दुस्‍तान को उगते सूरज की ओर देखना होता है, सूर्योदय को देखना होता है; तो पूरे हिन्‍दुस्‍तान को सबसे पहले अरुणाचल की तरफ अपना मुंह करना पड़ता है। हमारा पूरा देश, सवा सौ करोड़ देशवासी- सूर्योदय देखना है तो अरुणाचल की तरफ निगाह किए बिना सूर्योदय देख नहीं पाते। और जिस अरुणाचल से अंधेरा छंटता है, प्रकाश फैलता है; आने वाले दिनों में भी यहां विकास का ऐसा प्रकाश फैलेगा जो भारत को रोशन करने में काम आएगा।

अरुणाचल मुझे कई बार आने का सौभाग्‍य मिला है। जब संगठन का काम करता था तब भी आया, गुजरात में मुख्‍यमंत्री रहा तब भी आया और प्रधानमंत्री बनने के बाद आज दूसरी बार आप सबके बीच, आपके दर्शन करने का मुझे अवसर मिला है।

अरुणाचल एक ऐसा प्रदेश है कि अगर आप पूरे हिन्‍दुस्‍तान का भ्रमण करके आएं, हफ्ते भर भ्रमण करके आएं और अरुणाचल में एक दिन भ्रमण करें- पूरे हफ्ते भर में पूरे हिन्‍दुस्‍तान में जितनी बार आप जय हिंद सुनोगे, उससे ज्‍यादा बार जय हिंद अरुणाचल में एक दिन में सुनने को मिलेगा। यानी शायद हिन्‍दुस्‍तान में ऐसी परम्‍परा अरुणाचल प्रदेश में मिलेगी कि जहां पर एक-दूसरे को greet करने के लिए समाज जीवन का स्‍वभाव जय हिंद से शुरू हो गया है और जय हिंद से जुड़ गया है। रग-रग में भरी हुई देशभक्ति, देश के प्रति प्‍यार; ये अपने-आप में अरुणाचल वासियों ने; ये तपस्‍या करके इसको अपने रग-रग का हिस्‍सा बनाया है, कण-कण का हिस्‍सा बनाया है।

जिस प्रकार से north-east में सबसे ज्‍यादा हिन्‍दी बोलना-समझने का अगर कोई प्रदेश है तो मेरा अरुणाचल प्रदेश है। और मैं तो मुझे हैरानी हो रही है, इन दिनों में north-east में मेरा दौरा होता रहता है, पहले तो आपको जहां मालूम है प्रधानमंत्रियों को इतना काम हुआ करता था वो यहां तक आ नहीं पाते थे। और मैं एक ऐसा प्रधानमंत्री हूं कि आपके बीच आए बिना रह नहीं पाता हूं। लेकिन north-east में इन दिनों मैं जाता हूं तो मैं देख रहा हूं कि सब नौजवान बैनर लेकर खड़े हुए नजर आते हैं और मांग करते हैं हमें हिन्‍दी सीखना है, हमें हिन्‍दी सिखाओ। ये, ये एक बड़ा revolution है जी। मेरे देश के लोगों से उनकी भाषा में बातचीत कर पाऊं, ये जो ललक है और युवा पीढ़ी में है; ये अपने आप में बहुत बड़ी ताकत ले करके आई है।

आज मुझे यहां तीन कार्यक्रमों का अवसर मिला है। भारत सरकार के बजट से, भारत सरकार की योजना से, डोनर मंत्रालय के माध्‍यम से ये brand सौगात अरुणाचल की जनता को मिली है। Secretariat का काम तो प्रारंभ हो चुका। कभी-कभी हम अखबारों में देखते हैं ब्रिज बन जाता है लेकिन नेता को समय नहीं, इसलिए ब्रिज का उद्घाटन होता नहीं और महीनों तक पड़ा रहता है। रोड़ बन जाता है, नेता को समय नहीं; रोड़ वैसा का वैसा ही बना पड़ा रहता है।

हमने आ करके एक नया कल्‍चर शुरू किया। हमने नया कल्‍चर ये शुरू किया कि आप नेता का इंतजार मत करो, प्रधानमंत्री का इंतजार मत करो। अगर योजना पूरी हो चुकी है, उपयोग करना शुरू कर दो; जब आने का अवसर मिलेगा उस दिन लोकार्पण कर देंगे, काम रुकना नहीं चाहिए। और मुझे प्रेमा जी के प्रति अभिनंदन करता हूं कि उन्‍होंने काम शुरू कर दिया और लोकार्पण का काम आज हो रहा है। पैसे कैसे बच सकते हैं? पैसों का कैसे सदुपयोग हो सकता है? इस बात को हम भली-भांति से छोटे से निर्णय से भी समझ सकते हैं, देख सकते हैं।

अब सरकार ज‍ब बिखरी-बिखरी होती है, कोई department यहां, कोई वहां, कोई इधर बैठा है कोई उधर बैठा। मकान भी पुराना, जो अफसर बैठता है वो भी सोचता है जल्‍दी घर कैसे जाऊं। अगर environment ठीक होता है, दफ्तर का environment ठीक होता है तो उसका work culture पर भी एक साकारात्‍मक प्रभाव होता है। जितनी सफाई होती है, फाइलें ढंग से रखी हुई हैं; वरना कभी तो क्‍या होता है अफसर जब दफ्तर जाता है तो पहले कुर्सी को पट-पट करता है ताकि मिट्टी उड़ जाए, और फिर बैठता है। लेकिन उसको मालूम नहीं वे ऐसे उड़ाता है, बाद में वो वहीं पड़ती है। लेकिन एक अच्‍छा दफ्तर रहने के कारण और एक ही कैम्‍पस में सारे यूनिट आने के कारण अब गांव से कोई व्‍यक्ति आता है, secretariat में उसको काम है तो उसको बेचारे को, वो कहीं नहीं कहता कि इधर नहीं, दूर जाओ तो उसको वहां से दो किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा। फिर वहां जाएगा, कोई कहेगा यहां नहीं, फिर दो किलोमीटर दूर तीसरे दफ्तर में जाना पड़ेगा। अब वो यहां आया किसी गलत department में पहुंच गया तो वो कहेगा कि बाबूजी आप आए हैं अच्‍छी बात है, लेकिन ये बगल वाले कमरे में चले जाइए। सामान्‍य मानवी को भी इस व्‍यवस्‍था के कारण बहुत सुविधा होगी।

दूसरा, सरकार सायलों में नहीं चल सकती। सब मिल-जुलकर एक दिशा में चलते हैं तभी सरकार परिणामकारी बनती है। लेकिन अगर technical रूप में coordination होता रहता है तो उसकी ताकत थोड़ी कम होती है, लेकिन अगर सहज रूप से coordination होता है तो उसकी ताकत बहुत ज्‍यादा होती है। एक कैम्‍पस में सब दफ्तर होते हैं तो सहज रूप से मिलना-जुलना होता है, कैन्‍टीन में भी अफसर एक साथ चले जाते हैं, एक-दूसरे की समस्‍या की चर्चा कर-करके समाधान कर लेते हैं। यानी काम की निर्णय प्रक्रिया में coordination बढ़ता है, delivery system तेज हो जाता है, निर्णय प्रक्रिया बहुत ही सरल हो जाती है। और इसलिए ये नए secretariat के कारण अरुणाचल के लोगों के सामान्‍य मानवी के जीवन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए...। उसी प्रकार से आज एक महत्‍वपूर्ण काम, और वो मैं अपने-आप में गर्व समझता हूं। श्रीमान Dorjee Khandu State Convention Centre Itanagar का आज लोकार्पण करते हुए। ये सिर्फ एक इमारत का लोकार्पण नहीं है। ये एक प्रकार से अरुणाचल के सपनों का एक जीता-जागता ऊर्जा केंद्र बन सकता है। एक ऐसी जगह जहां conferences के लिए सुविधा होगी, cultural activity के लिए सुविधा होगी और अगर हम अरुणाचल में tourism बढ़ाना चाहते हैं तो मैं भी भारत सरकार की भिन्‍न-भिन्‍न कम्‍पनियों को कहूंगा कि अब वहां convention centre बना है, आपकी general board की मीटिंग जाओ अरुणाचल में करो। मैं प्राइवेट इन लोगों को बताऊंगा कि भई ठीक है ये दिल्‍ली-मुम्‍बई में बहुत कर लिया, जरा जाइए तो कितना प्‍यारा मेरा प्रदेश है अरुणाचल, जरा उगते सूरज को वहां जा करके देखिए। मैं लोगों को धक्‍का लगाऊंगा। और इतनी बड़ी मात्रा में लोगों का आना-जाना शुरू होगा। तो आजकल tourism का एक क्षेत्र होता है conference tourism. और ऐसी व्‍यवस्‍था अगर बनती है तब सब लोगों का आना बड़ा स्‍वाभाविक होता है।

हम लोगों ने सरकार में भी एक नया प्रयोग शुरू किया है। हम सरकार दिल्‍ली से 70 साल तक चली है और लोग दिल्‍ली की तरफ देखते थे। हमने आकर सरकार को हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में ले जाने का बीड़ा उठाया है। अब सरकार दिल्‍ली से नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने को लगना चाहिए सरकार वो चला रहे हैं।

हमने हमारा एक agriculture summit किया तो सिक्कम में किया, पूरे देश के मंत्रियों को बुलाया। हमने कहा जरा देखो, सिक्किम देखो, कैसे organic farming का काम हुआ है। आने वाले दिनों में North-East के अलग-अलग राज्‍यों में भारत सरकार के अलग-अलग विभागों के मंत्रालयों की बड़ी-बड़ी मीटिंग बारी-बारी से अलग-अलग जगह पर हों। North-East Council की मीटिंग में शायद मोरारजी भाई देसाई, आखिरी प्रधानमंत्री आए थे। उसके बाद किसी को फुरसत ही नहीं मिली, बहुत busy होते हैं ना PM. लेकिन मैं आपके लिए ही तो आया हूं, आपके कारण आया हूं और आपकी खातिर आया हूं।

और इसलिए North-East Council की मीटिंग में मैं रहा, विस्‍तार से चर्चाएं कीं। इतना ही नहीं, हमने पूरी दिल्‍ली सरकार में से मंत्रियों को मैंने आदेश किया कि बारी-बारी से हर मंत्री अपने स्‍टाफ को ले करके North-East के अलग-अलग राज्‍यों में जाएंगे। महीने में कोई सप्‍ताह ऐसा नहीं होना चाहिए कि भारत सरकार को कोई न कोई मंत्री, North-East के किसी न किसी राज्‍य के किसी न किसी कोने में गया नहीं है और ये पिछले तीन साल से लगातार चल रहा था।

इतना ही नहीं, डोनर मंत्रालय दिल्‍ली में बैठ करके North-East का भला करने में लगा हुआ था। हमने कहा, किया-अच्‍छा किया; अब एक और काम करो। पूरा डोनर मंत्रालय हर महीना, उसका पूरा secretariat, North-East में आता है। अलग-अलग राज्‍यों में जाता है, वहां रुकता है, और North-East के विकास के लिए सरकार- भारत सरकार ने क्‍या करना चाहिए, मिल बैठ करके चर्चा हो करके ये योजना होती है, review होता है, मॉनिटरिंग होता है, accountability होती है, और उसके कारण transparency भी आती है, काम नीचे दिखाई देने लगता है। तो इस प्रकार से ये व्‍यवस्‍था जो खड़ी होती है, ये जो convention centre बना है, वो भारत सरकार की भी अनेक मीटिंगों के लिए एक नया अवसर ले करके आता है, और उसका भी लाभ होगा।

आज यहां पर एक मेडिकल कॉलेज, मेडिकल हॉस्पिटल; उसके शिलान्‍यास का मुझे अवसर मिला है। हमारे देश में आरोग्‍य के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की हम आवश्‍यकता महसूस करते हैं। एक होता है human resource development, दूसरा होता है Infrastructure, तीसरा होता है most modern technology equipments; हम इन तीनों दिशाओं में health sector को ताकत देने की दिशा में काम कर रहे हैं।

हमारा एक सपना है कि हो सके उतना जल्‍दी हिन्‍दुस्‍तान में तीन parliament constituency के बीच में कम से कम एक बड़ा अस्‍पताल और एक अच्‍छी मेडिकल कॉलेज बन जाए। भारत में इतनी बड़ी मात्रा में मेडिकल कॉलेज बनेगी और वहीं का स्‍थानीय बच्‍चा, स्‍टूडेंट, अगर वहां मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है तो वहां की बीमारियां, स्‍वाभाविक होने वाली बीमारियां, उसका उसको अता-पता होता है।

वो दिल्‍ली में पढ़ करके आएगा तो दूसरा सब्‍जेक्‍ट पढ़ेगा, और अरुणाचल की बीमारी कुछ और होगी। लेकिन अरुणाचल में पढ़ेगा तो उसको पता होगा कि यहां के लोगों को सामान्‍य रूप से ये चार-पांच प्रकार की तकलीफें होती हैं। इसके कारण treatment में एक qualitative सुधार आता है, क्‍योंकि human resource development में local touch होता है। और इसलिए हम medical education को दूर-दराज interior में ले जाना चाहते हैं। और दूसरा, जब वहीं पर वो मेडिकल कॉलेज में पढ़कर निकलता है तो बाद में भी वो वहीं रहना पसंद करता है, उन लोगों की चिंता करना पसंद करता है और उसके कारण उसकी भी रोजी-रोटी चलती है और लोगों को भी स्‍वास्‍थ्‍य की सुविधाएं मिलती हैं। तो मुझे खुशी है कि आज अरुणाचल प्रदेश में वैसे ही एक निर्माण कार्य का शिलान्‍यास करने का मुझे अवसर मिला है जिसका इसके लिए आने वाले दिनों में लाभ होगा।

भारत सरकार ने हर गांव में आरोग्‍य की सुविधा अच्‍छी मिले, उसको दूर-दराज तक, क्‍योंकि हर किसी को major बीमारी नहीं होती है। सामान्‍य बीमारियों की तरफ उपेक्षा का भाव, असुविधा के कारण चलो थोड़े दिन में ठीक हो जाएंगे, फिर इधर-उधर की कोई भी चीज ले करके चला लेना, और गाड़ी फिर निकल जाए फिर बीमार हो जाए, और गंभीर बीमारी होने तक उसको पता ही न चले। इस स्थिति को बदलने के लिए इस बजट में भारत सरकार ने हिन्‍दुस्‍तान की 22 हजार पंचायतों में, मैं आंकड़ा शायद कुछ मेरा गलती हो गया है; डेढ़ लाख या दो लाख; जहां पर हम wellness centre करने वाले हैं, wellness centre; ताकि अगल-बगल के दो-तीन गांव के लोग उस wellness centre का लाभ उठा सकें। और उस wellness centre से वहां पर minimum parameter की चीजें, व्‍यवस्‍थाएं, स्‍टाफ उपलब्‍ध होना चाहिए। ये बहुत बड़ा काम, ग्रामीण हेल्‍थ सेक्‍टर को इस बार बजट में हमने घोषित किया है। Wellness centre का, करीब-करीब हिन्‍दुस्‍तान की सभी पंचायत तक पहुंचने का ये हमारा प्रयास है।

और जो मैं 22 हजार कह रहा था, वो किसानों के लिए। हम आधुनिक मार्केट के लिए काम करने वाले हैं देश में ताकि अगल-बगल के 12, 15, 20 गांव के लोग, उस मंडी में किसान आ करके अपना माल बेच सकें। तो हर पंचायत में wellness centre और एक ब्‍लॉक में दो या तीन, करीब-करीब 22 हजार, किसानों के लिए खरीद-बिक्री के बड़े सेंटर्स; तो ये दोनों तरफ हम काम ग्रामीण सुविधा के लिए कर रहे हैं।

लेकिन इससे आगे एक बड़ा काम- हमारे देश में बीमार व्‍यक्ति की चिंता करने के लिए हमने कई कदम उठाए हैं, holistic कदम उठाए हैं, टुकड़ों में नहीं। जैसे- एक तरफ human resource development, दूसरी तरफ अस्‍पताल बनाना, मेडिकल कॉलेज बनाना, infrastructure खड़ा करना, तीसरी तरफ-आज गरीब को अगर बीमारी घर में आ गई, मध्‍यम वर्ग का परिवार हो, बेटी की शादी कराना तय किया हो, कार खरीदना तय किया हो; बस अगली दिवाली में कार लाएंगे-तय किया हो और अचानक पता चले कि परिवार में किसी को बीमारी आई है तो बेटी की शादी भी रुक जाती है, मध्‍यम वर्ग का परिवार कार लाने का सपना बेचारा छोड़ करके साइकिल पर आ जाता है और सबसे पहले परिवार के व्‍यक्ति की बीमारी की चिंता करता है। अब ये स्थिति इतनी महंगी दवाइयां, इतने महंगे ऑपरेशंस, मध्‍यम वर्ग का मानवी भी टिक नहीं सकता है।

इस सरकार ने विशेष करके, क्‍योंकि गरीबों के लिए कई योजनाएं हैं लाभप्रद, लेकिन मध्‍यम वर्ग के लिए असुविधा हो जाती है। हमने पहले अगर हार्ट की बीमारी होती है, स्‍टेंट लगाना होता था तो उसकी कीमत लाख, सवा लाख, डेढ़ लाख होती थी। और वो बेचारा जाता था, डॉक्‍टर को पूछता था कि साहब स्‍टेंट का, तो डॉक्‍टर कहता था ये लगाओगे तो डेढ़ लाख, ये लगाओ तो एक लाख। फिर वो पूछता था साहब ये दोनों में फर्क क्‍या है? तो वो समझाता था कि एक लाख वाला है तो पांच साल- साल तो निकाल देगा, लेकिन डेढ़ लाख वाले में कोई चिंता नहीं- जिंदगी भर रहेगा। तो अब कौन कहेगा कि पांच साल के लिए जीऊं कि जिंदगी पूरी करुं? वो डेढ़ लाख वाला ही करेगा।

हमने का भाई इतना खर्चा कैसे होता है? हमारी सरकार ने मीटिंगें की, बातचीत की, उनको समझाने का प्रयास किया। और मेरे प्‍यारे देशवासियो, मेरे प्‍यारे अरुणाचल के भाइयो-बहनों, हमनें स्टेंट की कीमत 70-80 percent कम कर दी है। जो लाख-डेढ़ लाख में थी वो आज आज 15 हजार, 20 हजार, 25 हजार में आज उसी बीमारी में उसको आवश्‍यक उपचार हो जाता है।

दवाइयां, हमने करीब-करीब 800 दवाइयां, जो रोजमर्रा की जरूरत होती है। तीन हजार के करीब अस्‍पतालों में सरकार की तरफ से जन-औषधालय परियोजना शुरू की है। प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना- PMBJP. अब इसमें 800 के करीब दवाइयां- पहले जो दवाई 150 रुपये में मिलती थी, वो ही दवाई, वो ही क्‍वालिटी सिर्फ 15 रुपये में मिल जाए, ऐसा प्रबंध करने का काम किया है।

अब एक काम किया है कि गरीब व्‍यक्ति इसके बावजूद भी, दस करोड़ परिवार ऐसे हैं कि बीमार होने के बाद न वो दवाई लेते हैं, न उनके पास पैसे होते हैं। और इस देश का गरीब अगर बीमार रहेगा तो वो रोजी-रोटी भी नहीं कमा सकता है। पूरा परिवार बीमार हो जाता है और पूरे समाज को एक प्रकार से बीमारी लग जाती है। राष्‍ट्र जीवन को बीमारी लग जाती है। अर्थव्‍यवस्‍था को रोकने वाली परिस्थिति पैदा हो जाती है।

और इसलिए सरकार ने एक बहुत बड़ा काम उठाया है। हमने एक आयुष्‍मान भारत- इस योजना और इसके तहत गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले जो परिवार हैं- उसके परिवार में कोई भी बीमारी आएगी तो सरकार उसका Insurance निकालेगी और पांच लाख रुपये तक- एक वर्ष में पांच लाख रुपये तक अगर दवाई का खर्चा हुआ तो वो पेमेंट उसको Insurance से उसको मिल जाएगा, उसको खुद को अस्‍पताल में एक रुपया नहीं देना पड़ेगा।

और इसके कारण प्राइवेट लोग अब अस्‍पताल बनाने के लिए भी आगे आएंगे। और मैं तो सभी राज्‍य सरकारों का आग्रह करता हूं कि आप अपने यहां health sector की नई policy बनाइए, प्राइवेट लोग अस्‍पताल बनाने के लिए आगे आएं तो उनको जमीन कैसे देंगे, किस प्रकार से करेंगे, कैसी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप करें, उनको encourage करिए। और हर राज्‍य में 50-50, 100-100 नए अस्‍पताल आ जाएं, उस दिशा में बड़े-बड़े राज्‍य काम कर सकते हैं।

और देश के मेडिकल सेक्‍टर तो एक बहुत बड़ा revolution लाने की संभावना इस आयुष्‍मान भारत योजना के अंदर है और उसके कारण सरकारी अस्‍पताल भी तेज चलेंगे, प्राइवेट अस्‍पताल भी आएंगे और गरीब से गरीब आदमी को पांच लाख रुपया तक बीमारी की स्थिति में हर वर्ष, परिवार को कोई भी सदस्‍य बीमार हो जाए, ऑपरेशन करने की जरूरत पड़े, उसकी चिंता होगी। तो ये आज भारत सरकार ने बड़े mission mod में उठाया है। और आने वाले दिनों में इसका लाभ मिलेगा।

भाइयो, बहनों- आज मैं आपके बीच में आया हूं, तीन कार्यक्रम की तो आपको सूचना थी लेकिन एक चौथी सौगात भी ले करके आया हूं- बताऊं? और ये चौथी सौगात है नई दिल्‍ली से नहारलागोन एक्‍सप्रेस अब सप्‍ताह में दो दिन चलेगी और उसका नाम अरुणाचल एक्‍सप्रेस होगा।

आप अभी- हमारे मुख्‍यमंत्री जी बता रहे थे कि connectivity चाहे digital connectivity हो, चाहे air connectivity हो, चाहे रेल connectivity हो, चाहे रोड connectivity हो, हमारे नॉर्थ-ईस्‍ट के लोग इतने ताकतवर हैं, इतने सामर्थ्‍यवान हैं, इतने ऊर्जावान हैं, इतने तेजस्‍वी हैं, अगर ये connectivity मिल जाए ना तो पूरा हिन्‍दुस्‍तान उनके यहां आ करके खड़ा हो जाएगा, इतनी संभावना है।

और इसलिए, जैसे अभी हमारे मंत्रीजी, हमारे नितिन गडकरी जी की भरपूर तारीफ कर रहे थे। 18 हजार करोड़ रुपये के अलग-अलग प्रोजेक्‍ट इन दिनों अकेले अरुणाचल में चल रहे हैं, 18 हजार करोड़ रुपये के भारत सरकार के प्रोजेक्‍ट चल रहे हैं। चाहे रोड को चौड़ा करना हो, Four line करना हो; चाहे ग्रामीण सड़क बनाना हो, चाहे national highway बनाना हो, एक बड़ा mission mode में आज हमने काम उठाया है, Digital connectivity के लिए।

और मैं मुख्‍यमंत्रीजी को बधाई देना चाहता हूं। कुछ चीजें उन्‍होंने ऐसी की हैं जो शायद ये अरुणाचल प्रदेश दिल्‍ली के बगल में होता ना तो रोज प्रेमा खंडू टीवी पर दिखाई देते, सब अखबारों में प्रेमा खंडू का फोटो दिखाई देता। लेकिन इतने दूर हैं कि लोगों का ध्‍यान नहीं जाता। उन्‍होंने 2027- twenty-twenty seven, दस साल के भीतर-भीतर अरुणाचल कहां पहुंचना चाहिए, कैसे पहुंचना चाहिए- इसके लिए सिर्फ सरकार की सीमा में नहीं, उन्‍होंने अनुभवी लोगों को बुलाया, देशभर से लोगों को बुलाया, पुराने जानकार लोगों को बुलाया और उनके साथ बैठ करके विचार-विमर्श किया और एक blueprint बनाया कि अब इसी रास्‍ते पर जाना है और twenty-twenty seven तक हम अरुणाचल को यहां ले करके जाएंगे। Good Governance के लिए ये बहुत बड़ा काम मुख्‍यमंत्रीजी ने किया है और मैं उनको साधुवाद देता हूं, बधाई देता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं।

दूसरा, भारत सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है और मुझे खुशी है कि प्रेमा खंडुजी की तरफ से मुझे उस काम में भरपूर सहयोग मिल रहा है। Transparency, accountability, इस देश में संसाधनों की कमी नहीं है, इस देश में पैसों की कमी नहीं है। लेकिन जिस बाल्‍टी में पानी डालो, लेकिन बाल्‍टी के नीचे छेद हो तो बाल्‍टी भरेगी क्‍या? हमारे देश में पहले ऐसा ही चला है, पहले ऐसा ही चला है।

हमने आधार कार्ड का उपयोग करना शुरू किया, direct benefit transfer का काम किया। आप हैरान होंगे, हमारे देश में विधवाओं की जो सूची थी ना, widows की; जिनको भारत सरकार की तरफ से हर महीने कोई न कोई पैसा मिलता था, पेंशन जाता था। ऐसे-ऐसे लोगों के उसमें नाम थे कि जो बच्‍ची कभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुई, लेकिन सरकारी दफ्तर में वो widow हो गई थी और उसके नाम से पैसे जाते थे। अब बताइए वो पैसे कहां जाते होंगे? कोई तो होगा ना?

अब हमने direct benefit transfer करके सब बंद कर दिया और देश का करीब-करीब ऐसी योजनाओं में करीब-करीब 57 हजार करोड़ रुपया बचा है, बताइए, 57 हजार करोड़ रुपया। अब ये पहले किसी की जेब में जाता था अब देश के विकास में काम आ रहा है। अरुणाचल के विकास के काम आ रहा है- ऐसे कई कदम उठाए हैं, कई कदम उठाए हैं।

और इसलिए भाइयो-बहनों, आज मेरा जो स्‍वागत-सम्‍मान किया, मुझे भी आपने अरुणाचली बना दिया। मेरा सौभाग्‍य है कि भारत को प्रकाश जहां से मिलने की शुरूआत होती है, वहां विकास का सूर्योदय हो रहा है; जो विकास का सूर्योदय पूरे राष्‍ट्र को विकास के प्रकाश से प्रकाशित करेगा। इसी एक विश्‍वास के साथ मैं आप सबको बहुत बधाई देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

मेरे साथ बोलिए- जय हिंद।

अरुणाचल का जय हिंद तो पूरे हिन्‍दुस्‍तान को सुनाई देता है।

जय हिंद – जय हिंद

जय हिंद – जय हिंद

जय हिंद – जय हिंद

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।



***

Courtesy: pib.nic.in

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